04 अगस्त, 2017

बिखराव



बदले की भावना के बीज 
हर कण में बसे हैं 
भले ही सुप्त क्यों न हों 
जलचर, नभचर और थलचर 
सबके अंतस में छिपे हैं ! 
जब सद्भाव जागृत होता 
मानस अंतस में अंगड़ाई लेता 
कहीं सुप्त भाव प्रस्फुटित होता 
जड़ें गहराई तक जातीं 
डाली डाली पल्लवित होती 
जब किसीका सामना होता 
खुल कर भाव बाहर आता
एक से दो , दो से चार 
आपस में जुड़ जाते 
फिर समूह बन आपस में टकराते 
द्वंद्व युद्ध प्रारम्भ होता 
जिसका कोई अंत न होता 
आज का समाज 
बिखराव के कगार पर है 
यही तो कलयुग का प्रारम्भ है ! 


आशा सक्सेना 


01 अगस्त, 2017

आई तीज हरियाली



आई तीज हरियाली 
अम्मा ने रंगा लहरिया 
पहनी चूनर धानी-धानी 
उसकी शान निराली 
हाथों में मेंहदी लगा 
महावर से पैर सजाये 
पहने पायल बिछिये 
छन-छन बजने वाले 
आटे की गौर बना कर 
पूरी पूए का भोग लगाया
आँगन में नीम तले
झूला झूल सावन के 
गीत गाये 
बड़े पुराने दिन 
फिर याद आये  
कुछ अंतरे याद रहे 
कुछ विस्मृत हुए 
यह सोच प्रसन्नता हुई 
हमने रीति रिवाज़ 
को कायम रखा 
इस परम्परा को 
आने वाली पीढ़ी 
कौन जाने 
निभाये न निभाये ! 



चित्र - गूगल से साभार 

आशा सक्सेना 



28 जुलाई, 2017

नैनों में सुनामी




दो नैनों के नीले समुन्दर में 
तैरती दो सुरमई मीन 
दृश्य मनमोहक होता 
जब लहरें उमड़तीं 
पाल पर करतीं वार 
अनायास सुनामी सा 
कहर टूटता 
थमने का नाम नहीं लेता ! 
है ये कैसा मंज़र 
न जाने कब 
नदी का सौम्य रूप 
नद में बदल जाता ! 
हृदय विदारक पल होता 
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते हैं 
निशान अपने छोड़ जाते हैं ! 


आशा सक्सेना 







23 जुलाई, 2017

कुण्डली हाइकू



गाड़ी न छूटे
वक्त पर पहुँचो 
पकड़ो गाड़ी  

दबंग बनो 
किसीसे मत डरो
रहो दबंग 

राज़ की बात 
किया जो परिहास 
दुःख का राज़ 

दिया जलाया 
घर भी जला दिया 
क्यों दर्द दिया 

जागृत नैन 
सचेत तन मेरा 
मन जागृत 

खिलाये फूल 
थोड़ी सी भी रिश्वत 
बिना खिलाये 

आया सैलाब 
छिपा है आफताब 
तूफ़ान आया 

हवा जो चली 
पाश्चात्य फैशन की 
बिगड़ी हवा 

हुई आहट
द्वार पर किसकी 
आमद हुई ! 

सावन आया 
चमके बिजुरिया 
भाया सावन ! 

आशा सक्सेना 

20 जुलाई, 2017

मनमीत



फिर एक बार आनन पर 
मीठी मुस्कान आई है ! 
जाने कैसी है बात 
पुन: चमक आई है ! 
हर शब्द साहित्य का 
कुछ तो अर्थ रखता है 
हर अर्थ में नव भाव हैं 
हर भाव में एक बंधन है 
इस बंधन में स्पंदन है 
यहीं स्पंदन में है 
निहित भाव प्रेम का 
जिसने प्यास जगाई है !
यही भाव नहीं बदलते हैं 
स्थाई भाव बंधन 
प्यार के संचार के 
जिसमें है अनुराग भरपूर 
दमकता आनन दर्प से 
दर्प का नूर कभी न मिटता 
यही है निशानी सच्चे साथी की 
जो किताबों से है दूर 
पर सत्य के नज़दीक 
हर पल नया अहसास 
जगाने में लगा है ! 


चित्र - गूगल से साभार 
आशा सक्सेना 




16 जुलाई, 2017

न आई वर्षा



चहुँ ओर घिरे बादल 
बरसा न एक बूँद पानी 
जन-जन बूँद बूँद को तरसा 
बेहाल ताकता महाशून्य में 
यह कैसा अन्याय 
कहीं धरा जल मग्न 
कहीं सूखे से बेहाल 
आखिर यह भेद भाव क्यों 
क्यों नहीं दृष्टि समान 
कहीं करते लोग पूजा अर्चन 
बड़े-बड़े अनुष्ठान 
कहीं उज्जैनी मनती 
कहीं होते भजन कीर्तन 
यह है आस्था का सवाल 
हे प्रभु यह कैसा अन्याय 
जल बिन तरस रहा 
जनमानस का एक तबका 
दूसरा करता स्वागत वर्षा का 
दादुर मोर पपीहा करते आह्वान 
वर्षा जल के आने का 
कोयल मधुर गीत गाती 
पास बुलाती अपने जीवन धन को 
क्यों नहीं आये अभी तक 
देती उलाहना प्रियतम को 
धरा चाहती चूनर धानी 
अपने साजन को रिझाने को ! 


आशा सक्सेना 

13 जुलाई, 2017

नयी राह

distant beautiful sights.and a long road. pics  के लिए चित्र परिणाम

जब कोई अंग अक्सर कहने लगे 
रुक रुक रुक रुक 
समझ में आये 
कहीं कोई अकारण ही 
कहीं भी रुक जाए ! 
कभी परिवर्तन स्थान का होता 
कभी परिवर्तन सोच का होता ! 
कहीं मन में बिखराव होता 
तो जीवन के अंधे मोड़ पर 
कहीं किसी जगह 
केवल ठहराव आता ! 
मन को इस परिवर्तन की 
आदत सी हो गयी है ! 
दुनिया व्यर्थ सी लगती है 
जीवन में सब अकारथ है 
कहीं भी कुछ ऐसा नहीं है 
जिससे मन जुड़ा हो ! 
दिल की बगिया 
अकारण ही उजड़ने लगी है ! 
रंग बिरंगे फूलों की क्यारियों में 
फूल बेरंग हो गए हैं ! 
सूख गए हैं ! 
पर एक अनोखी उड़ान ने 
नई दुनिया के द्वार पर 
एक नई राह खोली है ! 
जीवन में हर पल नया है 
और इस पल से 
इसी मार्ग पर चल पड़ा है ! 
सुखद है या दुखद 
यह तो पता नहीं 
पर कुछ तो नया है 
जो मन को भाता है ! 


आशा सक्सेना