10 मार्च, 2017

बेटा चाँद पकड़ना चाहे


निशा के अन्धकार में 
चन्दा चमके आसमान में 
नन्हां बेटा पकड़ना चाहे 
 चन्दा मामा  हाथ में  |
बहलाया कई लालच दिए
अन्दर बाहर ले कर गई 
ध्यान बटाने की कोशिश में 
 जिद्द बेटे की बढ़ती गई |
हद तो तब हुई जब 
 डबडबाई आँखें उसकी 
वह बिना चाँद के   सोना न  चाहे 
रोने का हथियार चलाए |
मैंने बहुत विचार किया 
अपना बचपन याद किया 
एक बार मां ने जलभरी परात में 
चन्दा मुझे दिखाया था |
जल्दी से परात लाई 
जलभर कर आँगन में आई 
जल में अक्स चन्दा मामा का 
बेटे से पकड़वाना चाहा |
किये अथक प्रयास पर व्यर्थ रहे 
वह थक गया और सो गया 
सुबह तक वह भूल गया 
किस बात के लिए जिद्द की थी |
न चाँद था न रात आँगन में
 केवल पानी भरी परात थी
भोली भाली जिद्द ने उसकी
मेरा बचपन याद दिलाया
बीती यादों में पहुंचाया |
आशा









08 मार्च, 2017

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस



बड़ी बड़ी बातों से
कोई महान नहीं होता
एक दिन की चांदनी से
अन्धकार नहीं मिटता
महिला तो महिला ही रहेगी
सुखी हो या दुखों से भरी
एक दिन में सुर्ख़ियों में आकर
अखवारों में तस्वीर छपा कर
अपनी योग्यता गिनवाकर
अन्तराष्ट्रीय दिवस में छा कर
प्रथम श्रेणी में तो न आ पाएगी
दूसरे दर्जे की है मुसाफिर
प्रथम में कैसे जाएगी
वर्षभर अनादर सहती
बारबार सताई जाती
अपेक्षित सम्मान न पाती
कुंठाओं से ग्रसित वह
कैसे यह दिवस मनाए
अपनी पीड़ा किसे बताए |
आशा




मैं अदना सा तिनका


जब जब जल बरसता 
सड़क नदी बन जाती
चाहे जो बहने लगता
तैरने डूबने लगता
पर मैं अदना सा तिनका
 बहाव के संग बहने लगता
चीख चिल्लाहट बच्चों का रोना
सभी दीखता सामने
 मैं नन्हां सा तिनका
बहते बहते सोच रहा
क्या होगा भविष्य मेरा
जैसे सब डूब रहे हैं
मेरा भी हश्र कहीं
उन जैसा तो न होगा
यदि जलमग्न हुआ
क्या से क्या हो जाऊंगा
अभी तो बेधर हुआ हूँ
फिर मिट्टी में मिल जाऊंगा |
आशा





06 मार्च, 2017

नाग राज


हम तो बांबी पूजन आए 
नहीं कोई बैर  हमारा तुमसे 
 नागराज क्यूं बिल से निकले 
यह रौद्र रूप मन दहलाए |
तुम्हें कष्ट पहुंचाया किसने 
क्या बदला लेने उससे आए 
या मौसम बहुत प्यारा लगा 
आनंद उठाने उसका आए |
तुमने हाथ मिलाया कृषक से
हाथ बटाने उसका आए 
अवांछित तत्वों को खाया भगाया 
खेत को उनसे बचाया |
तभी कहा जाता है 
मित्रता निभाना तुम्हें आता है 
कोई माने या न माने 
ऋण चुकाना तुम्हें आता है |
आशा




03 मार्च, 2017

एक किरण आशा की

चारो ओर छाया अन्धेरा 
उजाले की इक किरण ढूँढते हैं 
 गद्दारों से घिरे हुए हैं
ईमान की एक झलक ढूँढते हैं 
ईमान पर जो खरी उतारे 
ऐसी एक शक्सियत चाहते  हैं
जिस दिन रूबरू होंगे उससे
उन पलों की तारीख ढूँढते हैं 
शायद कभी वह मिल जाए 
उस पल का सुकून खोजते  हैं
आशा पर टिके  हैं
 निराशा से कोसों दूर
मन का संबल खोजते हैं |
आशा










01 मार्च, 2017

लच्छे बातों के


चाहे जब तुम्हारा आना 
बातों के लच्छों से बहकाना 
यह क्यूँ भूल गए 
आग से खेलोगे तो 
जल जाओगे
उससे दूर रहे अगर 
धुंआ तो उठेगा पर  अधिक नहीं
वह दूरी तुमसे बना लेगी 
भूल जाएगी तुम्हारा आना 
सामीप्य तुमसे बढ़ाना 
इन बातों में तथ्य नहीं है 
 तुम  जानते हो अन्य सब नहीं
है अनुचित 
अनजान बने रहना 
बातों से नासमझ को बहकाना
राह सही क्यूँ नहीं चुनते 
सही राह पर यदि न चलोगे 
गिर जाओगे सब की निगाहों में 
बहकाना भूल जाओगे उसे |
आशा







27 फ़रवरी, 2017

फागुन आते ही



 मंद मंद पवन चले
गेहूं की बालियाँ
लहराएं बल खाएं
खेतों में हलचल मचाएं
सांध्य सुन्दरी के आते ही
आदित्य लुकाछिपी खेले 
बालियों के पीछे से
खेले खेल संग उनके
आसमा भी हो जाए सुनहरा
साथ उनके खेलना चाहे
अपनी छाप छोड़ना चाहे
पर बालियाँ थकित चकित हो
अन्धकार को अपनाना चाहें
सोने का मन बनाएं
सूरज अस्ताचल को जाए
अन्धकार के स्वागत में
चन्दा तारे चमचमाएँ |
आशा