08 अप्रैल, 2016

हाईकू एक बानगी

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ये कैसे रिश्ते 
राह चलते बने 
हरियाली से |
 नारी सबल के लिए चित्र परिणाम
नारी सवल 
अवला न समझो 
है आधुनिका |

वह सक्षम
निर्भय व साहसी
कमतर  हहीं |
pustak se pyaar के लिए चित्र परिणाम 
थी उदास मैं 
की पुस्तकों से यारी 
उदासी दूर |
पैरों की पायल के लिए चित्र परिणाम
तेरी चाहत
बनी पैरों कीबेड़ी
बढ़ने न दे |

आशा










05 अप्रैल, 2016

आशा

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तुम क्या जानो
है आशा क्या ?
है उसका महत्त्व क्या ?
कभी सोच कर देखना
हो अधूरे आशा बिना
जहां कहीं उससे मिलोगे
उसी पर खरे उतरोगे
जग में जाने जाओगे
आशावान कहलाओगे
लोग तुम्हें सराहेंगे
सब के प्रिय हो जाओगे
आशा की आभा चहरे पर
अद्भुद प्रभाव छोड़ेगी
वही आभा दूर तक
साथ तुम्हारा देगी
कण कण से प्रसन्नता मिलेगी
संतुष्टि सदा मिलेगी
जिसने आशा को जाना
उसे आत्मसात किया
वही सफल रहा
पूर्ण सुखी जीवन जिया |
आशा


04 अप्रैल, 2016

किताब


है वह पृष्ठ एक किताब का 
यूँही नहीं खोला गया
एक अक्षर भी न पढ़ा 
व्यर्थ समय गवाया गया
क्यूं वह आज तक खुला है 
किस की प्रतीक्षा है ?
ऐसा क्या लिखा है उसमें
 जिसे कभी ना पढ़ा गया |
पढ़ना पढ़ाना कोई 
बच्चों का खेल नहीं 
समय बहुत देना पड़ता है 
पढ़ा हुआ गुनने में 
खुली रही यदि किताब 
खोने लगती अपनी आव
क्या होगा हश्र उसका जब
 खुला हुआ  पन्ना बेचारा
 स्याही में नहा लेगा 
या दाल का सेवन करेगा 
जो भी उसपर लिखा गया था 
अस्पष्ट इतना होगा 
कि पढ़ना तक असंभव होगा 
प्रतीक्षा उसे ही रहती है 
कोई तो उपाय हो 
कि उस पर दृष्टि पड़े  
कोई ऐसा पारखी हो 
बिना पढ़े ही उसे गुने 
किताब की सार्थकता
 तभी  हुआ करती है जब
पन्ना पन्ना पढ़ा जाए 
रसास्वादन उसका 
पूरा पूरा किया जाए 
आधी अधूरी न रहे 
तभी पढ़ना होता  सार्थक 
अर्थ का  जब हो  न अनर्थ|

आशा



 

03 अप्रैल, 2016

नादान भ्रमर

 
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मंद मंद बहती पवन 
अटखेलियाँ करती 
फूलों से लदी  डालियों से 
डालियाँ झूमती 
झुक झ्य्क जातीं 
कलियाँ चटकटीं 
खिलते सुमन 
सुरभि का प्रसार 
जब भी होता 
भ्रमर हो मस्त 
वहां खिचे चले आते 
गुंजन करते
 अपनी सुध बुध खो 
गुंजन भवरों का 
पुष्पों का मन मोहता 
बांधना चाहते उन्हें 
अपने आलिंगन में 
घुमंतू भ्रमर 
एक जगह न रुकते  
आगे जाना चाहते 
पर बंधन 
इतना प्रगाढ़ होता 
मुक्त न हो पाते 
अपनी नादानी पर
 झल्ला कर रह जाते |
आशा
 



31 मार्च, 2016

आरज़ू


थी आरज़ू मन में
कि तुझे अपनाऊँ
सारा प्यार अपना
तुझ पर ही लुटाऊँ
अपना सब कुछ वार दूं
तुझ में ही खो जाऊं
पर अर्जी मेरी व्यर्थ गई
यूंही खारिज हो गई
दूरियां बढ़ती गईं
आरज़ू अधूरी रही
मन में सिमटती गई
शायद तू नहीं जानती
तू मेरी कभी न थी
ना ही कभी होगी
है तू मेरी कल्पना
मुझ में ही समा गई |
आशा

30 मार्च, 2016

नारी आज की


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निर्भय हो विचरण करती
अपनी क्षमता जानती
अनजान नहीं परम्पराओं से
  सीमाएं ना लांघती |


परिवार की है बैसाखी

हर कदम पर साथ देती

है कर्मठ और जुझारू
आत्मविश्वास से भरी रहती |

जी जान लगा देती 
हर कार्य करना चाहती 
हार उसे स्वीकार नहीं 
खुद को कम ना आंकती |

है यही  छुपा राज
  नारी के उत्थान का 
आज के समाज में 
अपने पैर जमाने का |

पर अभी भी मार्ग दुर्गम 
पार करना सरल नहीं 
है परीक्षा कठिन फिर भी 
उसे किसी का भय नहीं |

 आँखें नहीं भर आतीं उसकी 
छोटी छोटी बातों पर 
दृढ़ता मन में लिए हुए है 
निर्भयता का है आधार |


 दृढ इच्छा शक्ति से भरी 
सजग आज के चलन से 
अब नहीं है अवला
जीती जीवन जीवट से |

माँ बहन पत्नी प्रेमिका 
ही नहीं बहुत कुछ है वह 
जिस क्षेत्र में कदम रखती 
सफलता उसके कदम चूमती |

है आज की नारी 
अवला नहीं है 
सर्वगुणसंपन्न है 
बेचारी नहीं है |
आशा











28 मार्च, 2016

तुम क्यूं भूले

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है राधा रानी शक्ति तुम्हारी
तुम क्यूं भूले
मथुरा में अपना डेरा डाला
राधा को भूल गए
है यह कैसा न्याय तुम्हारा
उसने सब कुछ तुम पर वारा
तुमने पलट कर न देखा
कर्तव्य पथ पर ऐसे चले
वृन्दावन छोड़ चले
वह तो है शक्ति तुम्हारी
उसे यदि साथ ले जाते
अधिक ही सफलता पाते
फिर भी वह साथ रही सदा
तुम्हारी छाया की तरह
आज भी अधूरे हो राधा बिना
कहलाते हो राधा रमण
सब जपते राधे कृष्ण
राधे राधे |
आशा