11 अप्रैल, 2015

जननी को कौन याद करता




 सागर में सीपी असंख्य
असंभव सब को एकत्र करना
फिर भी अपेक्षा रहती
मोती वाली सीपी की |
मोती तरह तरह के
छोटे बड़े सुडौल बेडौल
उन्हें तराशती नज़र पारखी
आभा तभी निखरती |
आव मोती की
 बनाती अनमोल उसे
और मूल्य बढ़ जाता
जब सजता  आकर्षक आभूषण में |
 मोती मुकुट के बीच दमकता
शीष हजारों नित झुकते
प्रभु के सजदे में
तब मान मोती भी पाता |
जब सजता प्यार के उपहार में
आव  द्विगुणित हो जाती
अनमोल नजर आती
 उंगली की अंगूठी में |
आकर्षण मोती का
दिन प्रति दिन बढ़ता 
जब मधुर चुम्बन मिलता
प्रेम को परिपक्व करता |
तब  सागर  की या सीपी की
किसी को याद न आती
मोती याद रहता
जननी को कौन याद करता |

09 अप्रैल, 2015

अरमां एक


अरमां एक रह गया शेष
मैं तेरी छबि निहारूं
तेरी स्तुति  नित करूं
सदा  तुझको ही ध्याऊँ |
श्यामल गात तेरा
भीगा तन मन उसी में 
रंगा श्याम रंग  में 
है कैसा अचरज |
तेरी छबि नयनों में बसी
जाने कितने रूपों में
उन को ही मन में ले
 रात्रि विश्राम को जाऊं |
प्राणपखेरू उड़ने को तत्पर
सुमिरन बिन उड़ न पाऊँ
माया से दूर करो मुझको
बंधन मुक्त हो पाऊँ |
आशा

07 अप्रैल, 2015

जीवन निरझरणी


धवल लकीरों सी धाराएं
दूर पहाड़ी पर दीखतीं
मंथर गति से आगे बढ़तीं
चाल श्वेत सर्पिनी सी
ज्यों ज्यों आगे को बढ़तीं
आपसमें मिलती जातीं
जल प्रपात के रूप में
ऊपर से नीचे को आतीं |
एक विचारक खोज रहा
झरने में गति जीवन की
जाग्रत होता उत्साह उसमें
झरने से उड़ती फुहारों से |
द्रुत गति प्रतीक लगती
दौड़ते भागते जीवन की
खुशियाँ अपनी खोजता
जल प्रपात के बहाव में |

05 अप्रैल, 2015

स्वप्न अधूरा

स्वप्न सजाए  थे कभी
तुझ को  समर्पण  के
कदम बढ़ाए  थे
आशाएं मन में लिए  ।
पर तेरे पाँव की
धूल तक छू न सके
जिस पर  गुमान कर पाते
अभिमान से सिर उठाते ।
आशा अभी बाक़ी है
पर  अक्स तेरा
कहीं खो गया है
दूर मुझसे हो गया है ।
वर्षों से भटक रहा हूँ
तेरी झलक पाने को
आँखें हुई बेकल
दरश तेरा पाने को ।
मुझसे क्या त्रुटि हुई
कम से कम
इशारा तो किया होता
मन में मलाल न रहता ।
यदि चरणों में जगह मिलती
कुछ तो सुधार होता
दर दर न भटकना पड़ता
अधूरा स्वप्न पूर्ण होता 
आशा





03 अप्रैल, 2015

दायरे यादों के

 
हैं बृहद  दायरे यादों के 
यह कम ही जान पाते 
सब   चलते उसी पगडंडी पर
ठिठक जाते चलते चलते 
मार्ग में ही अटक जाते हैं
कदम बढ़ने नहीं देते
अधिकाँश लौट जाते हैं
कुछ ही बढ़ पाते हैं 
आगे जाने की चाहत में 
जाने कब चल देते हैं 
 व्यवधानों से बचते बचाते
उसी वीथिका पर
दृढ़ता और आस्था
 यादों के चौराहों को
चिन्हित कर देतीं
वे सही दिशा जान कर 
वहीं पहुँच जाते हैं 
कण कण में बिखरी यादें 
सहेजते अपने नेत्रों से 
सजोते अपने दिल में
और खो जाते 
अपनी यादों की दुनिया में
जब भी उदास होते 
ठहर भी जाते
कुछ पल के लिए
किसी चिन्हित चौराहे पर 
उस याद को
 ताजा करने के लिए
कहीं गहराई में 
उसे छिपा कर
सजा कर रखने के लिए 
हैं वे बड़भागी कामयाब
 सफल  अपने उद्देश्य में |
आशा





01 अप्रैल, 2015

झरना

 
जलप्रपात
कलरव करता
आती फुहार |

जल बहाव
ऊपर से नीचे को
मनोरम है |


सुरम्य धार
झरझर झरता
जल प्रपात |

जीवन आज
बहता झरना है
रुकता नहीं |

जल प्रपात
मधुर संगीत से
मन हरता |

जीवन जीना
झरने सा प्रवाह
उससे सीखा |


आशा


31 मार्च, 2015

सत्य


 

खोज सत्य की
झूटों ने ही की होगी
सच न बोले |

शक्ति सत्य की
जिसने पहचानी
है वही ग्यानी |


टिका जीवन
सत्य असत्य पर
जीतता  सत्य  |

सत्य वचन
महिमा अनुपम
जग जानता |

सत्य कथन
दिल बड़ा चाहिए
कह पाने को |

संवादहीन
असहज घातक
सामान्य नहीं |

सम्यक सोच
अभिव्यक्ति सरल
हो निर्विकार |
 

आशा