07 जनवरी, 2015

बर्फ ही बर्फ


बर्फ ही बर्फ
नहीं पिघल रही
जमती झील |

ओस से ढके
कोमल पत्ते यहाँ
हैं परेशान |


ओले पड़ते
टीन पर गिरते
शोर मचाते |

मजा आगया
बर्फबारी देखते
पहाड़ों पर |

घना कोहरा
पगडंडी न  दिखी
हुई टक्कर |

दूर दृष्टि से
कुछ नहीं सूझता
छाया कोहरा |

आशा

06 जनवरी, 2015

रात दिन


कलह होती
 जब भी  दिन रात
कटुता आती |
सुबह शाम
 है व्यस्तता अधिक
नहीं विश्राम |
दिन ही होता
और निशा न होती 
तो क्या होता ?
दिन में काम
व्यस्तता अधिक ही 
रात्रि विश्राम |
दोपहर में
तीव्रता लिए धूप
झुलसा गई |


ढलती शाम
छिपा अस्ताचल में 
आदित्य ही है |
रात अन्धेती
 उड़ते उडगन
चमक रहे|

 सुन्दर समा
 सन्नाटे में रात के 
बंधता जाता|
जुगनू गाता
 अहसास दिलाता
 नहीं अकेले |

आशा


05 जनवरी, 2015

उड़ी पतंग

उडी पतंग 
जीवन डोर बंधी 
रुक न सकी |
वो कट गई 
आसमां में भटकी 
कच्चा था मांझा
थपेड़े सहे 
खुले आसमान में 
नन्हीं जान ने |

बेटी पतंग
उड़ चली पी संग
हुई अनंग |

कटती डोर
वायु ने झझकोरा
कोई  न ठौर |

फटी पतंग
आसमान से गिरी
उलझी डोर |


आशा

03 जनवरी, 2015

वरण नए चोले का


एक दिन वह सो गया 
लोगों ने कहा वह मर गया 
मृत्यु का वरण किया
और अमर हो गया 
पर सच यह  नहीं क्या ?
आत्मा ने घर छोड़ा
वस्त्र बदले मोह त्यागा 
नया चोला धारण किया 
नवीन गृह प्रवेश किया 
अनादी अनंत आत्मा 
कभी मृत नहीं होती 
बारबार वस्त्र बदलती 
नया चोला धारण करती 
 अनंत में विचरण करती
जब मन होता उसका
गोद किसी की भरती
कोई घर आबाद करती 

आशा

31 दिसंबर, 2014

विगत --आगत {हाईकू गुच्छ )


बीतता आज ---

हुआ विदीर्ण
 मनवा विगलित
त्रासदी देख  |


कैसा दरिंदा
मर्यादा भूल गया
हैवान हुआ |

दिन या रात
नहीं है सुरक्षित
है कमसिन |

आगत वर्ष ---

आगत वर्ष
दे रहा दस्तक
आने के लिए |

नवीन वर्ष
आया सम्रद्धि लिए
स्वागत करो |

स्वच्छ भारत
हो सम्रद्ध भारत
अरमां यही |

है दुआ यही
आएं ढेरों खुशियाँ
नव वर्ष में |

स्वागत नव वर्ष का ---

स्वागतम
नव वर्ष तुम्हारा
सुखमय हो |

ना ही कटुता
आने वाले कल में
आये मन में |


सौहार्द पले
जाग्रत जगत हो
अम्बर तले |

नवल वर्ष
सजधज के आया
उत्साह जगा |


आशा



30 दिसंबर, 2014

तारा आकाश में


नीलाम्बर में
एकल धूमकेतु
अनर्थ न हो |
एक सितारा
घूम रहा आवारा
सितम ढाता |

प्यारा सा तारा
टिमटिम करता
उसे बुलाता |
हर्षित मन
चमकते सितारे
लगते प्यारे |
आकाश गंगा
संगम है तारों का
असंख्य तारे |
आशा

26 दिसंबर, 2014

मैं अकेला


     मैं अकेला
खो गया यूं ही नहीं
गुमनामी के अँधेरे में
अपने आसपास ओढ़ा
आवरण भी गहन नहीं
फिर भी अन्धकार से घिरा
मार्ग से बिचलित हुआ
अहसास अकेलेपन का
इस तरह हावी हुआ
जीवन भार सा हुआ
अब रह ही क्या गया
नई राह खोजने को
उस पर आगे बढ़ने को
अब खुद से ही बेजार हूँ
करनी पर पशेमान हूँ
मैं ही पकड़ नहीं पाया
समय से पीछे रह गया
यदि पहले से सचेत होता
गुमनामी नहीं झेलता
हमजोली मेरा होता
हर कदम पर साथ देता
यूं ही एकल ना रहता |
आशा