21 दिसंबर, 2014

एक सर्द रात




रात चांदनी महकी रात रानी
उस बाग़ में
तर्क कुतर्क बहस बेबात की
सोने न देती
दीखता नहीं हाथों को हाथ यहाँ
छाया कोहरा
फैला कुहासा सो गई कायनात
आँखें न खुलीं
जाड़े की रात कहर बरपाती
रुकी जिन्दगी
एहसास है निर्धन बालक को
है सर्दी क्या
जला अलाव आतेजाते अपने
हाथ सेकता 
बर्फ बारी में  ठंडक से हारा है 
जीत न पाया 
ठण्ड की रात वर्षा बेमौसम की 
कुल्फी जमाती |
आशा


19 दिसंबर, 2014

वाणी


पैनी कटार
विष रस से भरी
जिव्हा ही थी |

कभी सोचना
कितना दुःख देता
कटु भाषण |

है राम बाण
संयम वाणी का
देता सुकून |

बोल मधुर
वाणी पर संयम
तभी सफल |

शब्द चयन
कितना आवश्यक
सब जानते |


अर्थ अनर्थ
शब्दों का होता खेल
रखें संयम |

आशा
·

17 दिसंबर, 2014

है बदला सर्वोपरी



है मन उदास अशांत
सोच हावी है
सुबह से शाम तक
है जंग विचारों की
बच्चे तो बच्चे हैं
 काले हों या गोर
इस देश के या उस देश के
कैसा कहर वरपाया
मासूम   नौनिहालों पर
इंसानियत होती है क्या
शायद नहीं जानते
दीन  ईमान कुछ भी नहीं
है बदला सर्वोपरी
दहशतगर्दों के लिए
एक बार भी नहीं सोचा
क्या बिगाड़ा था बच्चों ने
यह कौन सी मिसाल
 कायम की है
बदले की भावना की
यदि यह हादसा पहुंचता
उनके खुद के बालकों तक
तब भी क्या यही
प्रतिक्रया होती
है बदला सर्वोपरी |
आशा



जीवन के रंग




रंग विशेष
झलके जीवन से
मन अनंग |

विविध रंग
केनवास व् कूची
जीवंत दृश्य |


लालिमा लिए
कपोल कामिनी के
कुछ कहते |

रंग रसिया
ओ रे मन बसिया
रंग न लगा |

भीनी महक
पहचान है तेरी
मैं जान गई |

जागी उमंग
तेरे रंग में रंगी
दूजा रंग क्या |

महक तेरी
वह जान जाती है
बिना बताए |

गंध हिना की
दर्ज कराती रही
उपस्थिति की |

तू क्या जाने
तेरी पहचान है
तेरी महक |




आशा

15 दिसंबर, 2014

चंचला


· बहती रही
चंचला नदिया सी
मेरी बिटिया |

गीत नदी का
जब गुनगुनाती
खुश हो जाती |


है ही चंचल
चपल नदिया सी
लगती प्यारी |

बहता जल
कलकल निनाद
जीवन धन |
आशा

12 दिसंबर, 2014

उड़ान



 दिन चढ़े सूरज सर पर
हुई धुन सवार
सुर्खाव के पंख लगाकर 
की कोशिश पंछी सी `
ऊंची उड़ान भरने की
छूने को नभ में निर्मित
आकृतियों को
रूप बदलते बादलों को
पर उड़ न सकी पटकी खाई
मन कुपित गात शिथिल
फिर भी ललक उड़ने की
गिर कर ही उठना सीखा था
उंगली पकड़ चलना सीखा था
फिर उड़ने में भय कैसा ?
उलझन बढी पर मन न डिगा
यही जज्बा कर गया सचेत
थकावट का नाम न रहा
तन मन हुआ उत्फुल्ल
 विश्वास की सीड़ी
 इतनी कमजोर भी नहीं
साहस का  है साथ
 लक्ष्य भी निर्धारित है
तब असफलता से भय कैसा
 सफलता जब  कदम चूमेंगी
उस पल की कल्पना ही
मन स्पंदित कर देती 
एक नया जोश भरती |