12 मई, 2014

रिश्ते



  1. रिश्ते :-
    कैसे ये रिश्ते
    पल में बदलते
    सतही होते |

    बनाया रिश्ता
    स्नेह से अपनाया
    नहीं टूटता |

    यूं अचानक
    दिल से दिल मिले 

    रिश्ता  है एक |



    रेत के ढेर
    हवा में उड़ते हैं
    रिश्ते बे पैर |

    रिश्ते सुहाने
    जब क्षीण हो जाते
    होते बहाने |

    दृग बोलते
    तुम न समझते
    भ्रमित होते |


    आशा

    ·

11 मई, 2014

चुनाव आज का




थमा चुनाव प्रचार हुई शान्ति अपार
अब मोदी ना राहुल ना ही केजरीवाल
कटाक्षों ने हद पार की
सब के मुंह पर कीचड़ उछला |
इस चुनाव में पार्टी गौण हुई
 व्यक्तिवाद  हावी हुआ
भाई भतीजा परिवार वाद भी दिखा
दो नावों में पैर रखा |
कुछ बातें होती अन्तरंग
धर में भी शोभा न देतीं
सडकों पर उछाली गईं
मर्यादा की सीमा पार कर गईं |
मान  हनन चरित्र हनन
सब कुछ खुले आम हुआ
बचा क्या रह गया
अपशब्दों का उपयोग हुआ |
पहले भी चुनाव होते थे
जश्न सी रौनक रहती थी
वादे पार्टी करती थी व्यक्ति नहीं 
नेता अभिनेता न था | 
आशा  

09 मई, 2014

कितना दुःख होता है

कितना दुःख होता है जब 
मन का मान नहीं होता 
जरा सी बात होती है 
पर अनुमान नहीं होता ।
 हृदय विकल होता है 
विद्रोह का कारण बनता है 
सहनशक्ति साथ छोड़ती 
उग्र रूप दीखता है
विद्रोही मन नहीँ सोचता
जितना भी उत्पात मचेगा 
खुद की ही अवमानना होगी
 जीना अधिक कठिन होगा ।
पर फिर भी लगता आवश्यक
गुबार जो घुमड़ता  मन में
उससे धुंआ ना उठें
वहीं का वहीं दफन हो जाए ।
आशा 



07 मई, 2014

मकसद कहाँ ले जाएगा




आज  अपनी ८५०वी रचना प्रस्तुत कर रही हूँ |आशा है अच्छी लगेगी |


बेकल उदास बेचैन राही
चला जा रहा अनजान पथ पर
नहीं जानता कहाँ जाएगा
मकसद  कहाँ ले जाएगा |
चलते चलते शाम हो गयी
थकान ने अब सर उठाया
सड़क किनारे चादर बिछा कर
रात बिताने का मन बनाया |
अंधेरी रात के साए में
नींद से आँख मिचोनी खेलते
करवटें बदलते बदलते
निशा कहीं विलुप्त हो गई  |
समय चक्र बढ़ता गया
सुनहरी धूप लिए साथ
 आदित्य का सामना  हुआ
सूर्योदय का भास् हुआ |
पाकर अपने समक्ष उसे
अचरज में डूबा डूबा सा
अधखुले नयनों से उसे
 देखता ही रह गया |
खोजने जिसे चला था
जब पाया उसे बाहों में
बेकली कहीं खो गयी
अपूर्व शान्ति चेहरे पर आई
मकसद पूरा हो गया |
आशा

04 मई, 2014

स्वप्न जगत


यह संसार स्वप्न जगत का 
अपने आप में उलझा हुआ  सा 
है विस्तार ऐसा आकलन हो कैसे 
कोई  कैसे उनमें जिए |

रूप रंग आकार प्रकार  
बार बार परिवर्तन होता 
एक ही इंसान कभी आहत होता 
कभी दस पर भारी होता |

सागर के विस्तार की
 थाह पाना है कठिन फिर भी 
उसे पाने की सम्भावना तो है 
पर स्वप्नों का अंत नहीं |

हैं असंख्य तारे फलक पर 
गिनने की कोशिश है व्यर्थ 
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल  
कल्पना में क्या जाता है |

स्वप्न में बदलाव पल पल होते 
यही बदलाव कभी हीरो
 तो कभी जीरो बनाते 
याद तक नहीं रहते |

बंद आँखों से दीखते 
खुलते ही खो जाते 
याद कभी रहते 
कभी विस्मृत हो जाते  |

उस  अद्दश्य दुनिया में 
असीम भण्डार अनछुआ 
बनता जाता रहस्य 
विचारक के लिए |

आशा