14 फ़रवरी, 2014

जो चाहा

जो चाहा जैसा चाहा
जितना चाहा पाया
पर प्यार भरा दिल
न पाया कितना सताया |
ममता की मूरत
दिखती हो पर हो नहीं
जाने क्या सोचती हो
मन समझ न पाया |
यह व्यवहार तुम्हारा
मन को दुखित कर जाता
दोहरा वर्ताव किस लिए
आज तक जान न पाया |
आशा

12 फ़रवरी, 2014

सच

रिसती आँखें
छलकता पैमाना
सच बताते|

खुली खिड़की
कुछ छिपता नहीं
है सच यही |


हो सच्चा प्यार
सत्य हो उजागर
समय थमे |


यमुना तीरे
किया सांध्य वंदन
मन स्पन्दित |


यमुना जल
प्रवाहित दीपक
अद्भुद द्दृश्य |


नफ़रत पली
दूरियां पलीं बढीं
  रहा न  प्यार |

आशा


10 फ़रवरी, 2014

हसीन पल



-ए हसीन  पल तनिक ठहरो
मैं हूँ वही
तुम्हारा एक हिस्सा
यही  अनुभव करने दो |
शायद सच में
यह ना हो संभव
मुझे भ्रम में ही
 जी लेने दो |
चाहती हूँ
उस पल को जीना
उसमें ही खोए रहना
फिर कोई  भी समस्या आए
दूरी उससे हो पाएगी |
तुम्हारी यादों का
सहारा लिए
जिन्दगी सरल हो जाएगी
तब मुझमें जो
विश्वास जागेगा
काया पलत जाएगी |
ए हसीन  पल
यदि तुमने
साथ दिया मेरा
जिन्दगी सवार जाएगी |
आशा

07 फ़रवरी, 2014

बीज भावों का


बीज भावों के बोए
शब्द जल से सींचे
वे वहीं निंद्रा में डूबे
बंद  आँखें न खोल सके
अनायास एक बीज जगा 
प्रस्फुटित हुआ
बड़ा हुआ पल्लवित हुआ
हर्षित मन बल्लियों उछला
कभी सोचा न था
यह अपनी आँखें खोलेगा 
उसका बढ़ना 
लगा एक करिश्मे सा
एक एक पर्ण उसका खेलता
वायु के संग झूम झूम
जाने कब कविता हो गया
सौन्दर्य से परिपूर्ण
उस पर छाया नूर
मन कहता देखते रहो
दूरी उससे न हो
आकंठ उसी में डूबूं
अनोखा एहसास हो
वह ऐसे ही फले फूले
 नहीं कोई  व्यवधान हो |

आशा 

06 फ़रवरी, 2014

सर्दी गयी वसंत आया

सुर्ख गुलाब से अधर तुम्हारे
अपनी ओर स्वतः खींचते
मोह बंध में बांधे रखते
ममता की भाषा समझते |
चाहत है उसे प्यार करूँ 
बेहिचक उसे स्वीकार करूँ 
पर विवेक रोकता है 
है यह एक छलावा 
इससे दूरी ही बेहतर है |

रंग वासंती चहु और बिखरा
मुखड़ा धरती का निखरा 
आ गयी वासंती पवन 
छा गयी आँगन आँगन |
आशा

03 फ़रवरी, 2014

हुआ वह दूर क्यूं ?



अनगिनत सवाल
अनुत्तरित रहते
जिज्ञासा शांत न होती
जब मन में घुमड़ते |
अशांत मन भटकता
अस्थिर बना रहता
कहीं टिक न पाता
रहता बेचैन रात दिन |
सोचती हूँ
 यह जन्म मिला ही क्यूं
यदि मिला  भी तो
दिमाग दिया ही क्यूं 
रखा संतोष सुख  से दूर क्यूं ?
रह गयी कमीं सबसे बड़ी
सब कुछ पाया
 पर संतोष धन नहीं |
कहावत खरी न उतरी
संतोषी सदा सुखी
अब यही कष्ट सालता है
हुआ वह दूर क्यूं  ?

02 फ़रवरी, 2014

मधुमास में

मुझे आप सब के साथ अपनी ८०० वी पोस्ट शेयर करना बहुत अच्छा लग
रहा है |आशा है आपको मेरी ये रचनाएं पसंद आएंगी ||
१-मन बावरा
खोज रहा गलियाँ
जहां खो गया |

२-यूं विलमाया
रमता गया वहां
मन मोहना |

३-प्रीत अभागी
कहीं मन का मीत
खो न जाए |


४-माया में लिप्त
मद मत्सर जागे
मोह छूटे ना |


५-वह खोजती 
उस मन का कोना 
जहां प्यार हो |

६-झीना आंचल
मदमस्त मलय
ले चली उड़ा |

7-उलझी लट
खुद से बेखबर
रूप अनूप |

८-आया बसंत
पीली सरसों फूली
धरा जीवंत |

९-मधुमास में
महुआ गदराया
हाथी है मस्त |

आशा