सुबह से शाम तक
परिवर्तित होते मौसम
में
नज़ारा झील के किनारे
का
नौका की सैर का
था अनुभव अनूठा
यूं तो उम्र का
तकाजा था
फिर भी कोई बच्चा
था मन में छिपा
जो चाहता था
एक एक जगह देखना
हर उस पल को जीना
जो वहां गुजारा |
यूँ तो बहुत ऊंचाई थी
फिर भी मन ना माना
चश्मेशाही तक जा पहुंचा
मीठे जल का स्वाद लिया
वैसा जल पहले
शायद ही कभी पिया |
टहनिया झुक झुक
जातीं
उनके भार से
मन ललचाता
देखने का प्रलोभन
कम न हो पाता |
पहली बार देखी
केशर की खेती
खुशी का ठिकाना न था
कुछ नया जो जाना था
समय कम था
जानना बहुत बाक़ी था |
जिग्यासा शांत न हो
पाई
रंग बदलते चिनार के
पत्ते
हरे पीले फिर लाल
होते पत्ते देखे
पर कारण नहीं खोज
पाई
मन के बच्चे को
समझाया
है यह कुदरत की माया
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