05 अप्रैल, 2018

नारी आज की













आज की नारी के लिए चित्र परिणाम
निर्भय हो विचरण करती
अपनी क्षमता जानती
अनजान नहीं परम्पराओं से
  सीमाएं ना लांघती |

परिवार की है बैसाखी
हर कदम पर साथ देती
है कर्मठ और जुझारू
आत्मविश्वास से भरी रहती |
जी जान लगा देती 
हर कार्य करना चाहती 
हार उसे स्वीकार नहीं 
खुद को कम ना आंकती |
है यही  छुपा राज
  नारी के उत्थान का 
आज के समाज में 
अपने पैर जमाने का
पर अभी भी मार्ग दुर्गम 
पार करना सरल नहीं 
है परीक्षा कठिन फिर भी 
उसे किसी का भय नहीं |
 आँखें नहीं भर आतीं उसकी 
छोटी छोटी बातों पर 
दृढ़ता मन में लिए हुए है 
निर्भयता का है आधार |
दृढ इच्छा शक्ति से भरी 
सजग आज के चलन से 
अब नहीं है अवला
जीती जीवन जीवट से |
माँ बहन पत्नी प्रेमिका 
ही नहीं बहुत कुछ है वह 
जिस क्षेत्र में कदम रखती 
सफलता उसके कदम चूमती |
है आज की नारी 
अवला नहीं है 
सर्वगुणसंपन्न है 
बेचारी नहीं है |
आशा

महिला तो महिला रहेगी



बड़ी बड़ी बातों से
कोई महान नहीं होता
एक दिन की चांदनी से
अन्धकार नहीं मिटता
महिला तो महिला ही रहेगी
सुखी हो या दुखों से भरी
एक दिन में सुर्ख़ियों में आकर
अखवारों में तस्वीर छपा कर
अपनी योग्यता गिनवाकर
अन्तराष्ट्रीय दिवस में छा कर
प्रथम श्रेणी में तो न आ पाएगी
दूसरे दर्जे की है मुसाफिर
प्रथम में कैसे जाएगी
वर्षभर अनादर सहती
बारबार सताई जाती
अपेक्षित सम्मान न पाती
कुंठाओं से ग्रसित वह
कैसे यह दिवस मनाए
अपनी पीड़ा किसे बताए |
आशा

04 अप्रैल, 2018

दोनो का प्रारब्ध एक सा



पिंजरे में band ek pakshi देखना देती लड़की के लिए इमेज परिणाम


घुगरू वाली पायल पहन कर
पूरे आँगन में घूमती
एक रंगबिरंगी चिड़िया उड़ आई
मेरे साथ  चली  दूर तक
मुझसे मित्रता हुई उसकी
कुछ दिन यह क्रम जारी रहा
पर एक दिन उसे
किया गया  बंद
 सुन्दर से पिंजरे में
बहुत पंख  फड़फड़ाए उसने
 पर स्वतंत्र न हो पाई
 थक कर निढाल हो गई
जैसे  जैसे उम्र बढ़ी मेरी
 बंधन भी बढ़ने लगे
यह करो यह ना करो
की दूकान हो गई
अधिक रोकाटोकी ने
मन को विद्रोही किया
कोई बंधन स्वीकार न था   
स्वतंत्र विचरण ,आचरण
ऊंचाई तक जाने के स्वप्न
साकार करने के जब दिन आए
सजी सजीसजाई सुन्दर सी
डोली में की गई बिदाई
ससुराल में रहने को 
उस चिड़िया सी हो कर रह गई
स्वप्न सिमटे मन के कौने में
ऊंची उड़ान कल्पना में |
आशा   

03 अप्रैल, 2018

चिड़िया की सतर्कता












  प्रातः काल सामने एक वृक्ष पर
बड़े प्रयत्न से छोटी सी  चिड़िया ने
तिनके चुन चुन घोसला बनाया
रहती थी वह अमन चैन से
अपने चूजों के संग बड़े सुख से
न जाने गिद्ध आया कहीं से
अपनी दृष्ट जमाई चूजों पर
चिड़िया ने भांप लिया
सिर पर मंडराते खतरे को
 पंख फैला  आवाज तेज कर
बच्चों के  इर्दगिर्द उड़ी तेजी से
गिद्ध उसकी सतर्कता से हो भयभीत
 कुछ देर रुक कर चल दिया
 सतर्कता आताताई से 
बड़े काम आई उसके |
आशा

01 अप्रैल, 2018

जिन्दगी की धूप -छाँव






जिन्दगी के खेल  में  
 बड़ा है झमेला
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम 
 किसी ने न जाना
 पहले पहल जब आँखें खुली  
लुकाछिपी खेली सूरज से
 कुनकुनी धूप सुबह की
 कहीं  ले गईं मन को
मन रमता  खेलकूद में
शैशव बीतता चढ़ते दिन सा
भरी दोपहर में तपती धूप में
पहुँचते अपने कार्य क्षेत्र में
योवन कब कहाँ खो जाता
समय न मिलता सोचने का
धूप- छाँव के खेल खेलता सूरज
   रथ पर हो कर सवार धीरे से 
 चल देता अस्ताचल को
रौशनी कम कम होने लगती 
  वह दिखता कांसे की थाली सा

जाने कब शाम गुजर जाती 

जान नहीं पाते 

जीवन अनुसरण करता 

आते जाते सूरज का
रात को सो जाता  सूरज 
डेरा जमाते सपने आकर 
जाने क्यूँ महसूस होता 
 अब  समय आ गया
जीवन के अवसान का 
आत्मा की मुक्ति का |
आशा