•  दिल है हमारा 
     कोई शिकार नहीं
    तीर नयनों से
     क्यूँ चलाने लगे
      जो कहर बरपाने लगे
    राह में कंटक अनेक
    पर  फूल भी कम नहीं
    और  राहें भी जुदा  नहीं
    फिर किस लिए
     दामन में मुंह
     छुपाने लगे
    क्यूँ राह से भटकने लगे
    हम हैं सरल सहज
     व्यक्तित्व के धनी
     ना  कोई फरेवी
     ना ही  कपटी
     स्वच्छ छवि है हमारी
    जो मन में है वही
     चहरे के भावों में
    दुनियादारी से
     दूरी बना कर चलते
    एक ही राह पर
     कदम बढ़ाते हैं
    आवश्यकता नहीं
    किसी की सलाह की
    नयनों के तीरों की
    या ताकाझांकी की
      खुद के नयन ही काफी है
     पथ प्रदर्शन के लिये |