16 फ़रवरी, 2017

संस्कार




आज की पीढ़ी
हो रही बेलगाम
संस्कार हीन |

भव्य शहर
संस्कार हैं विदेशी
अपने नहीं |

है महां मूर्ख
संस्कार न जानता
पिछड़ जाता |

संस्कार मिले
माता और पिता से
है भाग्यशाली |
आशा

15 फ़रवरी, 2017

मनुहार



उसके नयनों के वार
जैसे हों  पैनी कटार
आहत कर गए
जीना मुहाल कर गए |
कुछ नहीं सुहाता
दिन हो या वार
या भेजी गई सौगात
याद रहती बस
उस वार की
पैनी कटार के धार की 
उसके रूखे व्यवहार की |
उलझनों में फंसता जाता
यह तक भूल जाता
लाल गुलाब का वार है
ना कि कोई त्यौहार |
करना है प्यार का इज़हार
मनाना है उसे दस बार
धीरे धीरे कर मनुहार
न कि कर  प्रतिकार |
आशा




13 फ़रवरी, 2017

लाल गुलाब




दिया गुलाब का लाल फूल
सारी सीमायें भूल
दिल खोल कर रख दिया
मन में क्या था जता दिया
वह चित्र लिखी सी देख रही
हाथ से गुलाब लिया
थोड़ा झिझकी फिर शरमाई
शब्दों का टोटा पड़ गया
वह कुछ कह न पाई
नयनों की भाषा नयनों ने जानी
कहानी बनी बड़ी रूहानी |
आशा