01 मार्च, 2017

लच्छे बातों के


चाहे जब तुम्हारा आना 
बातों के लच्छों से बहकाना 
यह क्यूँ भूल गए 
आग से खेलोगे तो 
जल जाओगे
उससे दूर रहे अगर 
धुंआ तो उठेगा पर  अधिक नहीं
वह दूरी तुमसे बना लेगी 
भूल जाएगी तुम्हारा आना 
सामीप्य तुमसे बढ़ाना 
इन बातों में तथ्य नहीं है 
 तुम  जानते हो अन्य सब नहीं
है अनुचित 
अनजान बने रहना 
बातों से नासमझ को बहकाना
राह सही क्यूँ नहीं चुनते 
सही राह पर यदि न चलोगे 
गिर जाओगे सब की निगाहों में 
बहकाना भूल जाओगे उसे |
आशा







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: