15 सितंबर, 2016

वसुधैव कुटुम्बकम


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इतनी विशाल दुनिया में
दूर दराज देशों में
रहते लोग  अनेक
परिवेश जिनके भिन्न
भाषाएँ हैं अनेक
बात जब होती
 वसुधैव  कुटुम्बकम की
तरह तरह के विवाद छिड़ते
कोई मत ना एक
 सागर है विशाल भाषाओं का
अलग अलग भाषाएँ बोलते
जब बहस होती
 कौनसी संपर्क भाषा हो 
 एक मत कभी न हो पाते
  महत्वपूर्ण  सभी भाषाएँ
 प्रत्येक भाषा  कद्दावर है
प्रचुर समृद्ध साहित्य लिए
फिर बहस किस लिए
 हिन्दी सरल सहज भाषा  
समृद्ध भाषा विज्ञान है
सभी भाषाओं के शब्द
आंचलिक हों या विदेशी
मिलते जाते हैं इसमें
 खीर में दूध और चावल जैसे
तभी कहा जाता है  
क्यों न अपनाया जाए इसे
पर क्या जरूरी  है
 इसे जन जन पर थोपा जाए
है आवश्यक प्रचार प्रसार
पर बिना बात  बहस न हो
जो सच्चे दिल से अपनाए इसे
उसका स्वागत किया जाए
पर अनादर किसी भाषा का ना हो
साहित्य सभी पढ़ा जाए 
सम्मान की क्या जरूरत 
अध्ययन की रूचि 
 जागृत कर दी जाए |
आशा

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