08 अगस्त, 2016

कवि बेचारा


लिखने के लिए
अब रहा क्या शेष
सभी कब्जा जमाए बैठे हैं
रहा ना कुछ बाक़ी है
हम तो यूँ ही दखल देते हैं
किसी के प्रिय नहीं हैं
फिर भी जमें रहते हैं
तभी तो कोई नहीं पढ़ता
हमने क्या लिखा है 
ना रहा  किसी का वरद हस्त
ना ही कोई मार्ग दर्शक
हम किसी खेमें में नहीं
तभी अकेले हो गए हैं 
उड़ने की चाह ने 
दी है ऐसी पटकी 
भूल से भी नहीं देखेंगे 
ना ही कभी चाहेंगे 
तमगों की झलक भी |

आशा

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