31 अगस्त, 2016

एक अफ़साना


एक अफसाना सुनाया आपने
गहराई तक पैठ गया मन में
जब पास बुलाया आपने
थमता सा पाया उस पल को
कसक शब्दों की आपके
वर्षों तक बेचैन करती रही
जब भी भुलाना चाहा उसे
तीव्रता उसकी बढ़ती गई
जो दीप जलाया था मन मंदिर में
झोंका हवा का सह न सका
तीव्रता बाती की बढ़ी
लौ कपकपाई और बुझ गई 
प्रतिक्रया अफसाने की
आखिर किससे सांझा करती 
आप से कुछ कह न सकी
मन की मन में रह गई |
आशा

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