27 मई, 2016

छितराए बादल


मैंने तुझे बंधक बनाया 
अच्छा किया
नहीं तो तू भाग जाता
बूँद बूँद के लिए तरसाता
बदरा है तू कितना निष्ठुर
आता है चला जाता है
ज़रा भी तरस नहीं खाता
जल बिन जीवन कैसा होगा
कभी सोचना नहीं चाहता
यूं तो जल की कमीं नहीं
दो तिहाई समुन्दर है
पर है उसमें खारा जल
उस जल का क्या करें
प्यास बुझ नहीं सकती
आए दिन उसकी लहरें
सीमा छोड़ कर अपनी
जब उत्पात मचाने लगती 
जन जीवन होता प्रभावित
उत्पात मचाती तरंगों से
तेरा भागना इस तरह
मुझे अच्छा नहीं लगता
मान मेरी बात
गति अपनी नियंत्रित कर
यदि तू समय का ध्यान रखेगा
सभी तुझे सराहेंगे
तेरी अवमानना न होगी
तुझे भी प्रसन्नता होगी |
आशा

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