04 जुलाई, 2015

ऐसी भूल क्यूं ?


सैलाब भावनाओं का के लिए चित्र परिणाम
भावनाओं के बहाव में
की पैठ गहरे में
अमूल्य रत्न संचित किये
समेटे अपने आँचल में |
थे अथाह नहीं चाहते
समाना फैले आँचल में
उथल पुथल हुई
बाहर आने की होड़ में |
बेजोड़ शब्द हाथ बढाते
उन्हें  सहारा देते
वे प्रगट  होते
नए से  आवरण में |
मन में उठते शब्द जाल  में
 उलझते ऐसे
मन में मलाल न रहता
कि न्याय उनसे न हुआ |
पर कुछ रह ही जाते
जाने अनजाने में
चूक हो ही जाती
न्याय न हो पाता  |
है विषद संग्रह भावों का
हुई चूक का एहसास तक न होता
पर जब भी  होता
मन विचलित हो जाता |
इतनी सतर्कता बरती
फिर ऐसी भूल क्यूं ?
भाव कहीं गुम हो जाते
मन के किसी कौने में
दुबक कर सो जाते |
आशा  

समर्पण




    • krishna के लिए चित्र परिणाम
  • भावों के धागे में
    शब्दों के पुष्प गूंथ
    माला बनाई है
    श्याम तुझे
    अर्पण करने को
    स्वीकार करो
    यह तुच्छ भेट
    भक्ति भाव में
    खोने दो
    चरणों में दो
    स्थान प्रभू
    आत्म समर्पण
    करने दो |

    03 जुलाई, 2015

    हाईकू

    मौसम बरसाती के लिए चित्र परिणाम
    गलत क्या
    नहीं ज्ञान सच का
    आज के लोग |

    ठठरी सजी
    अश्रु न थम सके
    सर धुनते |

    नकली लेख
    असली लेखक था
    बहुत दुखी |

    लो आ गया
    मौसम बरसाती
      मन प्रसन्न |

    बंदिश एक
    गीत बने अनेक
    मधुर लगे |


    फूलों के बीच
     भ्रमर व् कंटक 
    वे काटें ना |

    मुख गुलाबी 
    कोमल गुलाब सा 
    मन महका |

    आशा

    02 जुलाई, 2015

    वादा है मेरा

    घने बाल के लिए चित्र परिणाम
    आओ छिपालूँ तुम्हें 
    अपने आगोश में 
    बांध लूं केशपाश में
    घनी कुंतल छाँव में |
    बंधन मुक्त ना हो पाओगे 
    प्यार की फुहार में 
    भीग भीग जाओगे 
    जाना न चाहोगे |
    मदहोशी बढ़ती जाएगी 
    बंधन में बंध कर
    खिचे चले आओगे 
    मुक्त न होना चाहोगे |
    इसकी ही तलाश थी अब तक 
    समय हाथ से फिसला 
    जितना तुम्हें बांधना चाहा 
    बढ़ता गया फासला  |
    हूँ आज तक आतुर 
    साथ तुम्हारा पाने को 
    अब दूर ना जाना मुझसे 
    बंधन है कच्चा धागा नहीं |
    है यह प्रीत पुरानी 
    अब तुम्हें सोचना है 
    इससे मुक्त  न हो  पाओगे 
    यह तुमसे वादा है मेरा |
     आशा




    30 जून, 2015

    परिणाम जान न पाई

     
    देख बादल आसमान में
    नाचता मयूर पंख पसारे
    थिरकता प्रसन्न होता
    मधुर स्वर उच्चारण करता |
    कृष्ण की बांसुती सुन जैसे
    गोपियां  खिची चली आतीं
    मधुर स्वर से प्रभावित
    मोरनी निकट उसके आती |
    नृत्य में तेजी आती
    थिरकन बढ़ती जाती
    पैरों पर जब दृष्टि पड़ती
    वह दुखी होता |
    अश्रु झरने लगते नयनों से
    वे धरती पर ना गिर जाएँ
     सोच मोरनी निकट आती
    अश्रु पीती बिना सोचे |
    क्या होगा परिणाम इसका
    नहीं जानना चाहती
    वर्षा आई मौसम बदला
    पर मयूर जोड़े में न दिखे
    दोनो अलग हुए सुहाने मौसम में
    रहे स्वतंत्र भोजन की तलाश में
      साथ किसी ने न देखा उन्हें  |
    आशा





    28 जून, 2015

    पक्षी प्रेम



    धरती जागी
    अम्बर जागा
    पृथ्वी  का कण कण
    हुआ चेतन |
    पर एक नन्हीं चिड़िया
    नहीं उड़ी
    ना ही चहकी
    वह थी उदासी से घिरी |
    कारण मौन का
    स्पष्ट था
    बिना दाना पानी के
    वह थी  उदास |
    पास आ प्यार जताया
    वह कसमसाई
    हलकी सी जुम्बिश हुई
    चौच उसकी खुली |
    वह जान गया
    वह भूखी थी
    पानी भी न मिला होगा
    कैसे क्षुधा शांत करती |
    कुछ दाने
    कुछ पानी एक कटोरी में
    जल्दी से ले आया
    दाना उसे चुगाया |
    चेतना जाग्रत हुई
    पंख फैला उड़ चली
    मधुर सुर गुनगुनाती
    संतुष्टि का भाव लिए |
     मनोभाव जताएअपने 
    दाना पानी के लिए
    दयाभाव रखने के लिए
    पक्षी प्रेम के लिए |
    आशा