23 जनवरी, 2015

कान्हां तेरी लीला न्यारी

कान्हां तेरी लीला न्यारी
ममता तुझ पर जाए वारी
चुपके से घर में घुसआया
दधि खाया मुंह में लपटाया
खुद खाया मित्रों को खिलाया
राह चलत मटकी फोड़ी
गोपी से की बरजोरी
वह भी चुपके चुपके
कदम्ब की छाँव तले
 ग्वाल वाल संग लिए
रास रचाया झूम झूम
बंसी की मधुर धुन सुन
गोपियाँ सुध बुध भूलीं
दौड़ी भागीआईं
तेरी ही हो कर रह गईं
तुझ से लगाया नेह अनूठा
माया मोह का बंधन छूटा
अपना आपा खो बैठीं
एक इच्छा मन में जागी
नेह बंधन ऐसा हो
जन्म जन्म तक बंधा रहे  |
आशा






21 जनवरी, 2015

बंधन



प्रभु तूने यह क्या किया
जन्म मृत्यु के बंधन में बांधा
 भवसागर तरना मुश्किल हुआ
कोई आकर्षण नहीं यहाँ |

जब जन्म हुआ तब कष्ट हुआ
जैसे तैसे सह लिया
बाद में जो कुछ सहा
उससे तो कम ही था |

बचपन  फिर भी बीत गया
रोना हंसना तब ही जाना
 भार पड़ा जब कन्धों पर
जीना दूभर हो गया |

तब भी शिकायत थी तुमसे
पर समय न मिला उसके लिए  
ज्यों ज्यों कमली भीगती गयी  
मन पर भार चौगुना हुआ |

बीती जवानी वृद्ध हुआ
बुढ़ापे ने कहर बरपाया
ना मुंह में दांत न पेट में आंत
असहाय सा होता गया |

जाने कब तक जीना होगा
रिसते घावों को सीना होगा
भवसागर के बंधन  से
कब छुटकारा होगा |

जाने कब मृत्यु वरन करेगी
इस जीवन से मुक्ति मिलेगी 
चाहे तो पत्थर बना देना
मनुष्य का जन्म  न देना भगवान |
आशा