18 दिसंबर, 2015

मूल मन्त्र

फूल पर बैठा भ्रमर के लिए चित्र परिणाम

मन रे  तू है कितना भोला 
खुद में ही खोया रहता 
जग  में क्या कुछ हो रहा
उससे  कोई ना नाता रखता 
भ्रमर पुष्प पर मंडराता
गीत प्रेम के गाता
हर बार नया पुष्प होता 
दुनिया की रीत निभाता
तू भी गुनगुनाता है
उन गीतों को दोहराता है
खिले हुए पुष्पों से
क्या  कभी रहा तेरा नाता ?
अपना सुख दुःख
तूने किस किस से बांटा ?
यही कला ना सीखी 
तभी रहा सदा ही घाटा
जब किसी से सांझा करेगा
विचारों का मंथन करेगा
बोझ तेरा हल्का होगा
घुटन का अनुभव न होगा
अंतर्मुखी हो कर जीना भी
क्या कोई  जीना है
रहो बिंदास प्रसन्न वदन
है  मूल मन्त्र जीवंत जीवन का |

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