26 अक्तूबर, 2015

अंकुश


छड़ी जंग मन और ह्रदय में के लिए चित्र परिणाम


एक दिन उसने कहा
कभी दूर न जाना
स्वप्नों में आना
आ कर न जाना |
कहा उसका मान लिया
लगाया अंकुश प्रवाह पर
कुछ क्षण ठहराना चाहा 
रुकने का मन बनाया |
मन को बंधन स्वीकार नहीं
रुकना उसकी फितरत नहीं
पर जाने की चाह नहीं
दुविधा आन पड़ी |
विद्रोही आदत से मजबूर
अस्थिर अधीर मन
कशमकश से विचलित
बगावत पर उतर आया |
छिड़ी जंग मन और ह्रदय में
हो कौन  विजयी रब  जाने
है जान सांसत में अभी तो
किसकी माने न माने |
भावुकता कम न होती
बुद्धि भी हावी होती
उलझन बढ़ती  जाती
विचार शून्य सी हो जाती |
यही हाल यदि रहा
कैसे निर्णय तक पहुंचूंगी
मन पर नियंत्रण न होगा
ना ही दिल काबू में होगा |
नीव जीवन की हिल जाएगी 
मंजिल दूर नजर आयेगी 
अनिर्णय की स्थिति में 
वह बोझ हो जाएगी |
आशा



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: