23 अगस्त, 2015

कहानी होकर रह गई

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बैठी उदास
गुमसुम गुमसुम
बहाती नीर
नयनों से छमछम
संयम न रख पाती
खुद पर
वेदना अंतस की
किसे बताए
कोई प्यार नहीं करता
उसे स्वीकार नहीं करता
जीने की चाह
हुई कमतर
वह झुकी
रेलिंग पर इतनी
सम्हल न सकी
नीचे गिरी
साँसें पलायन कर गईं
और जीवन लीला 
 इस लोक  की
समाप्त हो गई
वह कहानी
हो कर रह गई
आशा

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