04 जुलाई, 2015

ऐसी भूल क्यूं ?


सैलाब भावनाओं का के लिए चित्र परिणाम
भावनाओं के बहाव में
की पैठ गहरे में
अमूल्य रत्न संचित किये
समेटे अपने आँचल में |
थे अथाह नहीं चाहते
समाना फैले आँचल में
उथल पुथल हुई
बाहर आने की होड़ में |
बेजोड़ शब्द हाथ बढाते
उन्हें  सहारा देते
वे प्रगट  होते
नए से  आवरण में |
मन में उठते शब्द जाल  में
 उलझते ऐसे
मन में मलाल न रहता
कि न्याय उनसे न हुआ |
पर कुछ रह ही जाते
जाने अनजाने में
चूक हो ही जाती
न्याय न हो पाता  |
है विषद संग्रह भावों का
हुई चूक का एहसास तक न होता
पर जब भी  होता
मन विचलित हो जाता |
इतनी सतर्कता बरती
फिर ऐसी भूल क्यूं ?
भाव कहीं गुम हो जाते
मन के किसी कौने में
दुबक कर सो जाते |
आशा  

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