16 जून, 2015

सोच विद्यार्थी का


विद्यार्थी जीवन के लिए चित्र परिणाम
था  प्रथम दिवस शाला का
उत्साह की सीमा न थी
नया बस्ता नई पुस्तकें 
खोलने की जल्दी थी |
नए गणवेश में सजे  थे
नया लंच बॉक्स भी लिए थे
खुशी का ठिकाना न था
नई कक्षा में जाना था |
फिर भी मिल ही गए
यहाँ भी नए पुराने मित्र
बातों का सिलसिला
थमने का नाम न लेता था |
घंटी की आवाज  सुनी 
टूटी तंद्रा पहुचे प्रार्थना कक्ष में
वही उद्बोधन घिसापिटा
सुनते सुनते  उकताने लगे |
सोचा जब सभी कुछ नया था
फिर भाषण पुराना क्यूं
कल से फिर वही शिक्षक होंगे
वही कक्षा कार्य वही डांट |
क्या कोई तरीका नहीं है
नए  ढंग से अध्यन का   
हर क्षेत्र में परिवर्तन दीखते
फिर शिक्षा में क्यूं नहीं ?
आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: