21 मार्च, 2015

शैशव का वैभव


शैशव का वैभव
 कितना  विशाल
 उससे अनुराग
 अतुलनीय लगाव 
 सदा ही   मन में बसता 
जब कभी तस्वीरें 
धुंधली होने लगतीं 
देर नहीं लगती उन पर से 
धूल झाड़ने में 
फिर से उनको 
करीने से सजाने में 
हर अक्स महत्त्व रखता है 
बेजान कोई नहीं 
विषद स्थान घेरे है 
मन के मंदिर में
कागज़ की कश्ती के लिए चित्र परिणाम
छोटी सी कागज की कश्ती 
जब जल के संग बहती 
राह बदलती टकरा जाती
चाल उसकी बाधित होती
मन को चोटिल कर जाती
(विवाह गुडिया का )
आज भी पानी में छपछप
सड़क पर कंचों की खनक्
 गुड्डे गुड़िया का विवाह
रस्मों कसमों का निवाह 
भूल नहीं पाती 
वैभवपूर्ण बचपन में गुम 
उस संचित पूंजी को
 मन में छिपाए रखती हूँ   
एकांत में संचित वैभव को
बारम्बार निरखती हूँ |

आशा




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