28 फ़रवरी, 2015

नवल पर्ण



नवल पर्ण
कदली सा कोमल
लहलहाता |
वेग वायु का
जब झझकोरता
घबरा जाता |

होता विकल
डाली से जुदा होता
वीथि भूलता |
हार मानता
मार्ग भटक कर
  मुक्ति चाहता |
आशा

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