02 अगस्त, 2014

मन की चाह






मन क्या चाहता 
व्यक्त न कर पाता 
अपलक निहारता रहता
क्रम सृष्टि का निश्चित
सुबह होते ही जीवन में रवानी
धीरे धीरे रफ्तार बढ़ना
फिर शिथिलता और रात को थमना
निश्चित क्रम का एहसास
तक नहीं किसी को
ना ही कोई व्यवधान या घमासान
 की चाहत जीवन क्रम में
पर एक बिंदु पर आकर
मन शांत स्थिर होने को बेकरार
यही है जीवन का सत्य
जिसे जानना सरल नहीं
वही स्थिति पहुंचाती उस तक
होता जाता लीन उसी में
तब संसार तुच्छ लगता
मानसिक बल लिए साथ
शून्य में समाना चाहता
परम गति पाना चाहता |
आशा

31 जुलाई, 2014

उसे तो आना ही है






मुडेर पर बैठा कागा
याद किसे करता
शायद कोई  आने को है
दिल मेरा कहता |
जल्दी से कोई चौक पुराओ
आरते की  थाली सजाओ
किसी को आना ही है
मन मेरा कहता |
तभी तो आती  हिचकी
रुकने का नाम नहीं लेती
फड़कती आँख
 शुभ संकेत देती|
कह रहे सारे शगुन 
द्वार खुला रखना 
ढेरों प्यार लिए 
कोई आने को है |
हैं क्या ये  संकेत ही 
या मन में उठता ज्वार 
कितने सही कितने गलत 
 आता मन में विचार |
आशा




30 जुलाई, 2014

तीज



रंगरेजवा
लहरिया रंग दे
है तीज आज |
सुख सौभाग्य
सम्रद्धि का त्यौहार
मनाएं आज |
ओ सावरिया
गौरी मंगला तीज
सावन लाया |
आया रे आया 
हरियाला सावन 
झूलती झूला |

आशा

29 जुलाई, 2014

बन्दर राजा






चंचल चपल सक्रीय सदा
निचला बैठ नहीं पाता
 आदत से बाज नहीं आता
कुछ न कुछ हरकत करता
उछल कूद करता रहता |
खुद छोटा  पर पूंछ बड़ी सी
करता बहुत प्यार उसे
वह होती  बहुत सहायक
संतुलन कायम रखने में |
इस छत से उस छत पर जाना
 पेड़ों पर नर्तन करना
 अपनी लम्बी पूंछ लिए
है  खेल उसके लिए |
कच्चे पक्के फल खाना
कुछ  खाना कुछ को गिराना
बच्चों को चिपकाए रखना
है बस जिंदगी यही |
क्रोध जब कभी हावी होता
दांत दिखाता गुर्राता
फिर भी संयम नहीं छोड़ता
भागने में ही भलाई समझता |