17 दिसंबर, 2014

है बदला सर्वोपरी



है मन उदास अशांत
सोच हावी है
सुबह से शाम तक
है जंग विचारों की
बच्चे तो बच्चे हैं
 काले हों या गोर
इस देश के या उस देश के
कैसा कहर वरपाया
मासूम   नौनिहालों पर
इंसानियत होती है क्या
शायद नहीं जानते
दीन  ईमान कुछ भी नहीं
है बदला सर्वोपरी
दहशतगर्दों के लिए
एक बार भी नहीं सोचा
क्या बिगाड़ा था बच्चों ने
यह कौन सी मिसाल
 कायम की है
बदले की भावना की
यदि यह हादसा पहुंचता
उनके खुद के बालकों तक
तब भी क्या यही
प्रतिक्रया होती
है बदला सर्वोपरी |
आशा



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: