21 दिसंबर, 2014

एक सर्द रात




रात चांदनी महकी रात रानी
उस बाग़ में
तर्क कुतर्क बहस बेबात की
सोने न देती
दीखता नहीं हाथों को हाथ यहाँ
छाया कोहरा
फैला कुहासा सो गई कायनात
आँखें न खुलीं
जाड़े की रात कहर बरपाती
रुकी जिन्दगी
एहसास है निर्धन बालक को
है सर्दी क्या
जला अलाव आतेजाते अपने
हाथ सेकता 
बर्फ बारी में  ठंडक से हारा है 
जीत न पाया 
ठण्ड की रात वर्षा बेमौसम की 
कुल्फी जमाती |
आशा


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