12 सितंबर, 2014

सपनों में जी कर क्या होगा


 






सपनों में जी कर क्या होगा
नन्हीं बूँदें वर्षा की
कुछ कानों में गुनगुना गईं
वही बातें सोच सोच
तन मन भीगा वर्षा में |
घनघोर घटाएं छाईं
मौसम ने ली अंगडाई
घोर गर्जना आसमाँ  में
हड़कम्प मचाने आई |
चमकी बिजुरिया
हुआ अम्बर  स्याह
राही  यह सब देख कर
भूला अपनी राह |
रुका वृक्ष की छाया में
फिर भी बच न पाया
कल्पना कहीं खो  गई
भीगा भागा घर को आया |
सड़क पर कीचड़ ही कीचड़
घर का भी बुरा हाल था
टपकती अपनी छत देख
मन में मलाल आया |
पर अगले पल खुश हुआ
अभी कष्ट है तो क्या हुआ
यदि वर्षा कम हुई
जल आपूर्ति कैसे होगी |
सूखा पड़ गया अगर
पूरा साल कैसा होगा
वास्तविकता यही है
सपनों में जी कर क्या होगा |
आशा

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