06 अगस्त, 2014

प्रभाव मन पर



कोरी रही स्लेट
कागज़ भी कोरा
बन न पाए अक्स
मन के आईने पर  |
मन के भेद
जब भी  उजागर होते
लिपि बद्ध  किये जाते
प्रथम दृष्टा वे ही होते |
अश्रुओं की बरसात से
अक्षर धूमिल होने लगते
कागज़ फट जाता
कॉपी के पन्ने सा |
स्लेट की लिखावट मिट जाती
जल से धुल जाती
वह कोरी ही रह जाती
कुछ नया लिखने के लिए |
मन पर अंकित चिन्ह न मिटते
 जो निशान रह जाते शेष
अमित छाप  मन पर छोड़ते 
धूमिल तक नहीं होते |
कभी शूल से चुभते
कभी प्यार से सहारा देते  
सुख दुःख में साथ खड़े
मन के मीत होते |
हर स्वप्न  प्रभावित करता
खुद ही अर्थ निकालना होता 
वे मन में जब तक रहते 
विचार  घुमढ़ते  रहते
आशा

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