05 जुलाई, 2014

थी वह एक छलना









पेड़ों से छन कर आती धूप
बड़ी सुहानी लगती
प्रातः सूर्य दर्शन का
अनोखा अंदाज देती  |
वीथियों पर चलते चलते
नए नए अनुभव होते
जब विहग व्योम में उड़ाते
मधुर संगीत मन में भरते |
महावरी कदम जब
श्वेत  पुष्पों पर पड़ते
उनसे लुका छिपी करते
छलकता यौवन मन हरता |
ओस से नहाया वदन
उस धूप छाँव में
 अधिक ही  दमकता
मन में बसता |
पायल की रुनझुन
घुंघरुओं की मधुर धुन
ज्यों ही सुनाई देती
मन में कई रंग भरती |
हाथ बढा उसे छूना चाहता
पर पहुँच से बहुत दूर
थी वह एक छलना
कवि की केवल कल्पना |
आशा

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