09 जुलाई, 2014

फक्कड़







बहुत रोया जब जन्म लिया
माँ  की गोद में सोया
सब की बाहों में झूला
लगा खुशियों का मेला |
बचपन कब बीता याद नहीं
पर इतना अवश्य याद रहा
वह जीवन सीधा साधा था
चिंताओं  से बहुत दूर था |
हुआ किशोर मस्ती में जिया
मित्रों का प्रभाव अधिक हुआ
आगे क्या होगा न सोच सका
भावना  प्रधान होता गया |
यौवन ने दी दस्तक जब 
एक से दो और दो से चार हुए 
जिंदगी ढोना सीख लिया
जाने कब योवन बीत गया |
कब ज़रा ने घेरा दबे पाँव आकर
एहसास न हो पाया 
अब  है उसी से  याराना
आगे क्या होगा क्यूं सोचूँ|
पर हूँ उत्सुक जानने को
 जिंदगी  इतनी कट गई 
बहुत  बुरी भी न रही 
आगे न जाने क्या होगा |
आशा 

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