12 जुलाई, 2014

कविता में सब चलता है




कविता में सब चलता है
कोई सन्देश हो या न  हो
हर रंग नया लगता है
बस अर्थ निकलता हो
जो मन को छूता हो |
वहाँ शब्द जूझता
अपने वर्चस्व के लिए
अपने अस्तित्व के लिए
हो चाहे नया पुराना आधा अधूरा
या किसी अंचल का |
जब भाव पूर्ण हो जाए
वह रचना में रच बस जाए
सभी को स्वीकार्य फटे फटाए
 नए पुराने नोटों की तरह
हो जाता अनिवार्य रचना के लिए |
कविता चाहे कालजयी हो
या समय की मांग
शब्द तो शब्द ही है
अपना अस्तित्व नहीं खोता
उसका अर्थ वही रहता |

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