15 अप्रैल, 2014

अर्थ अनेक



एक शब्द अर्थ अनेक
सब के विश्लेषण सटीक    
जब सोचा समझा उपयोग किया
कितने ही पीछे छूट गए |
शब्द कोष में खोजा उनको
एक कल्पना की  मैंने
नया साहित्य सृजन करने की
उन्हें उचित स्थान देने की |
बड़े साहित्यकारों की तरह
कुछ का उपयोग किया भी
पर खरा न उतर पाया 
उनको सम्मान देने में |
वही शब्द भाषाएँ अनेक
सब में अर्थ अलग अलग
कुछ भी तो समान नहीं
खोता गया शब्दों के समुन्दर में |
पर जो चाहा वैसी रचना
ना कल बनी न आज बन पाई
मैं उलझा रहा नए पुराने
 शब्दो के जाल बांधने में  |
अभी भी बेकली छाई है
मन चाहता तराशना
शब्दों के समूह को
नया रूप देने को |
आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 17/04/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (16-04-2014) को गिरिडीह लोकसभा में रविकर पीठासीन पदाधिकारी-चर्चा मंच 1584 में "अद्यतन लिंक" पर भी है।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. टिप्पणी हेतु धन्यवाद |सूचना हेतु धन्यवाद सर |

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  3. यह एक रचनाकार की पीड़ा है जिसे सृजन के समय वह झेलता है ! जितनी गहराई में वह पहुँचेगा उतने ही अनमोल मोती झोली में भर लाएगा ! बहुत सुंदर रचना !

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  4. यह सही है कि शब्दों को साधना कोई आसान काम नहीं है - हर भंगिमा ,हर अर्थ हर जगह धारण कर लेता है .

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  5. (सुधार)
    'हर जगह भिन्न रूप धारण कर लेता है .'

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  6. शब्द नए अर्थों में चले आते हैं ... रचना में घुल मिल जाते हैं ...

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  7. यही है कविताई बे -कली ,बे -चैनी ,पोएटिक एंग्जाइटी

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