08 सितंबर, 2013

बिखरते रंग


यह रंग की तरंग 
और उसका अक्स जीवन पर 
करता रंगीन सारा समा
इसके बिना सब सूना यहाँ |
एक छोटा सा भी पत्थर
जब गिरता स्थिर जल में
उथलपुथल मचा जाता
शान्ति भरे जीवन में |
कई रंग बिखर जाते
अक्स कहीं गुम हो जाते
बहुत समय लग जाता
स्थिरता आने में |
अस्थिर जल चंचल मन
दूर दूर तक जा कर भी
थाह नहीं ले पाते
रंगबिरंगी दुनिया के
अनछुए पहलुओं की
अनकही बातों की |
आई आंधी साथ ले चली
सूखी मुरझाई पत्तियाँ
मन भी पीछे न रहा
उनके साथ हो लिया
रंग यहीं बिखर कर रह गए
 उन्हें समेट न पाया
वह साथ तो चला गया
पर फिर लौट न पाया |
आशा







12 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह ! बहुत बहुत सुंदर कविता !

    अस्थिर जल चंचल मन
    दूर दूर तक जा कर भी
    थाह नहीं ले पाते
    रंगबिरंगी दुनिया के
    अनछुए पहलुओं की
    अनकही बातों की |

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ ! मज़ा आ गया !

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।

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  3. बहुत खुबसूरत
    सच ही जीवन में भी पानी की लहरे की तरह छोटी सी बात भी उधल पुथल मचा देती है.......

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  4. बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीया-
    आभार आपका-

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  5. कल 09/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  6. सुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...

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  7. बहुत खुबसूरत .....यही जीवन है.....
    साभार......

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  8. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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