23 अगस्त, 2013

क्यूं सुनाऊँ मैं


क्यूं सुनाऊँ मैं तुम्हें
उसकी व्यथा कथा
तुमने कभी उससे
प्यार किया ही नहीं |
कुछ अंश ममता का
उससे बांटा  होता
नजदीकियां बढ़तीं
यूं अलगाव न होता |
ऐसे ही नहीं वह
सबसे दूर हो गयी
प्यार की छाँव से
महरूम हो गई |
ममता तुम्हारी मात्र
एक छलावा थी
काश तुमने उसे
 नया मोड़ दिया होता |
इस तरह किरच किरच हो
वह शीशे सी
 ना टूटती  बिखरती
यदि तुमने उसे छला न होता |
 आई थी  रुपहली धुप सी
दस्तक भी दी थी
तुम्हारे दिल के दरवाजे पर
तब सुनी अनसुनी की |
देखा न एक क्षण  को उसे
स्नेह भरी निगाह से
हो कर  उदास बेचैनी लिए
वह ढली सांझ सी |
इन बातों में
 अब क्या रखा है
यह तो कल की
बात हो गयी |
प्यार की चाह में भटकी
गुमराह हो गयी
फूल की चाह में
काँटों से मुलाक़ात हो गयी |
आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार की चाह में भटकी
    गुमराह हो गयी
    फूल की चाह में
    काँटों से मुलाक़ात हो गयी |

    बहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ

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  2. प्यार की चाह में भटकी
    गुमराह हो गयी
    फूल की चाह में
    काँटों से मुलाक़ात हो गयी |

    बहुत सुंदर*******

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  3. प्यार की चाह में भटकी
    गुमराह हो गयी..katu satya .....

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  4. प्यार की चाह में भटकी
    गुमराह हो गयी
    फूल की चाह में
    काँटों से मुलाक़ात हो गयी |
    बहुत बढ़िया ! बहुत सुंदर रचना है ! ज़िंदगी के बहुत करीब !

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