03 फ़रवरी, 2013

बंद करके जुगनुओं को

बंद करके जुगनुओं को
अपने पास रखा है
एक छोटे से कमरे में
उन्हें छिपा रखा है
|जब भी वे चमकें
रौशनी करें
केवल मेरे ही लिए हो
किसी और का सांझा न हो
सांझा चूल्हा मुझे नहीं भाता 
मन  अशांत कर जाता
तभी  तो एकाकीपन मैंने
सम्हाल कर रखा
बड़े यत्न  से
सदुपयोग उसका किया
एकांत पलों को भी जीना
सीख लिया है
अब परिवर्तन नहीं चाहती
एकांत का महत्त्व जान गयी
अपूर्व शान्ति पाते ही
कुछ सोच उभरते हैं
जिनके अपने मतलब होते हैं
यह अदभुद प्रयास
है नमूना एक
सार्थक जीवन जीने  का |

13 टिप्‍पणियां:

  1. विरले ही कमरे में बंद इन जुगनुओं से पर्याप्त रोशनी पा लेते हैं ! खूबसूरत अहसासों से सजी सुन्दर रचना !

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  2. बहुत ख़ूबसूरत अहसास..जीने के लिए एकांत को साथी बनाना ही पड़ता है..

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  3. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-02-2013 को चर्चामंच-1145 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  4. जुगनू इकट्ठे कर रोशनी की कल्पना सुन्दर है और विलक्षण भी !

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  5. प्रभावी प्रस्तुति |
    शुभकामनायें आदरेया ||

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  6. विचार और भाव का सशक्त सम्प्रेषण .स्वकेंद्रित आत्म मोह की सशक्त अभिव्यक्ति .हमारे वक्त की एक प्रासंगिक रचना .

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  7. लाजबाब अभिव्यक्ति....
    आपको बधाई

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