26 जनवरी, 2013

ऊष्मा प्यार की

रात कितनी भी स्याह क्यूँ न हो 
चाँद की उजास कम नहीं होती 
प्यार कितना भी कम से कमतर हो 
उसकी  मिठास कम नहीं होती 
कितना प्यार किया तुझको 
यह तक नहीं जता पाया 
तेरे वादों पर ऐतवार किया
जब  भी चाह ने करवट ली
चाँद  बहुत दूर नजर आया
यही  बात मुझे सालती है 
आखिर  मैंने क्यूँ प्यार किया 
वादों  पर क्यूँ ऐतवार किया
कहीं कमीं प्यार में तो नहीं  
जो तू इतना  बदल गयी
 तनिक भी होती ऊष्मा
 यदि हमारे  प्यार में
तू भी उसे महसूस करती
यह दिन नहीं देखना पड़ता  
प्यार से भरोसा न उठता |
आशा





11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खुबसूरत भाव ,बढ़िया प्रस्तुति !
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

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  2. कोमल भावों से परिपूर्ण सुन्दर रचना ! गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें!

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  3. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ,गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं

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  4. देश के 64वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-01-2013) के चर्चा मंच-1137 (सोन चिरैया अब कहाँ है…?) पर भी होगी!
    सूचनार्थ... सादर!

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  5. ''प्यार कितना भी कम से कमतर हो
    उसकी मिठास कम नही होती...
    अत्यन्त सुन्दर!
    गणतन्त्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनाएं.
    -विन्दु

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  6. बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,,,
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    recent post: गुलामी का असर,,,

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  7. बहुत बढ़िया...गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,

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  8. प्यार से भरोसा न उठता |
    kya bat hai sundar..

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  9. न जाने क्यूँ आज आपकी यह रचना पढ़कर वो एक पुराना गीत याद आया कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या ....लेकिन सच तो वही है जो आपने लिखा

    "रात कितनी भी स्याह क्यूँ न हो चाँद की उजास कम नहीं होती प्यार कितना भी कम से कमतर हो उसकी मिठास कम नहीं होती"

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