17 अगस्त, 2011

बोझ दिल का



बहुत कुछ छिपा है ह्रदय में
जैसे चिंगारी दबी हो राख में
घुटन सी रहती है
बेचैनी बनी रहती है |
कुछ सच का कुछ झूठ का
हर वक्त बोझ दिल पर
बढता ही जा रहा
बेबात उलझाता जा रहा |
कब तक दबूं
उस अहसास से
जो चाहता कुछ और है
पर हो जाता कुछ और |
अच्छे और बुरे दिनों ने
बहुत कुछ सिखाया है
बदलाव इस जीवन में
कुछ तो आया है |
मन की किस से कहूँ
अवकाश ही नहीं किसी को
मुझे सुनने के लिए
समस्या समझने के लिए |
अब खिंच रही है जिंदगी
बिना किसी उद्देश्य के
बोझ कम होने का
नाम नहीं लेता |
उसका हर क्षण बढ़ना कैसे रुके
कोइ राह नहीं दिखती
यह तक सोच नहीं पाता
होगा क्या परिणाम इसका |

आशा





10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    उसका हर क्षण बढ़ना कैसे रुके
    कोइ राह नहीं दिखती
    यह तक सोच नहीं पाता
    होगा क्या परिणाम इसका |
    बहुत खूब ........सच बताती आपकी ये रचना

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  2. मन को छु लेने वाली ये सुन्दर रचना ....

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  3. इतना बोझ दिल पर लाद कर रखने की ज़रूरत ही क्या है ! पल भर में उतार फेंकिये और मन हल्का कर लीजिए ! मन के विचलन को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है ! बहुत अच्छी रचना !

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  4. दिल पे जब बोझ होता है उतारना मुश्किल ही होता है ... उम्दा रचना ....

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  5. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  6. aadarneeya aashaji,
    अवकाश ही नहीं किसी को
    मुझे सुनने के लिए
    समस्या समझने के लिए |
    अब खिंच रही है जिंदगी
    बिना किसी उद्देश्य के
    बोझ कम होने का
    नाम नहीं लेता |
    उसका हर क्षण बढ़ना कैसे रुके
    कोइ राह नहीं दिखती
    यह तक सोच नहीं पाता
    होगा क्या परिणाम इसका |

    bahut khoob likha aapne jindagee ke bare.
    lekin kyun yun nirash hain aap?
    bhool gaee aap geeta me bhagwan srikrishanaji
    ne kya kaha tha "karm par hi tumara adhikar hai
    fal ki icha mat karo" to bas karm kiye jao,
    aur ashaji! jeevan ka katu satya to paramanand swaroop parmatma ko pana hai..ana -jana to sirf ik bahana hai.......aapka abhar.

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