11 सितंबर, 2010

ज्योत्सना

मैं और तुम ,
सदा से ही साथ रहते हैं ,
नहीं है शिकायत मुझे तुमसे ,
मैं जानना चाहता हूं ,
क्या काले दाग हैं,
मेरे चेहरे पर ,
वे तुमने भी कभी देखे हैं ,
चांदनी ने कहा चाँद से ,
मैं हर पल साथ रहती हूं ,
तुम्हारी शीतल किरणें बिखेरती हूं ,
व्यथित मन को शान्ति देती हूं ,
यांमिनी का सौंदर्य बढा देती हूं ,
यह तुम्हारी ही तो देंन है ,
नदी का किनारा हो ,
और चांदनी रात हो ,
लोग घंटों गुजार देते हैं ,
तुम्हारी स्निग्धता और आकर्षण ,
उन्हें बांधे रहते हैं ,
मैने तुम मैं कोई कमी नहीं देखी ,
यदि तुम्हें कोई दोष देता है ,
वह नहीं जान पाया तुमको ,
मैं बस इतना जानती हूं ,
हूं ज्योत्सना तुम्हारी ,
पृथ्वी पर विचरण करती हूं ,
जैसे ही भोर होती है ,
साथ तुम्हारे चल देती हूं |
आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. चांदनी ने कहा चाँद से ,
    मैं हर पल साथ रहती हूं ,
    तुम्हारी शीतल किरणें बिखेरती हूं ,
    व्यथित मन को शान्ति देती हूं ,
    यांमिनी का सौंदर्य बढा देती हूं ,
    यह तुम्हारी ही तो देंन है
    --
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!

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  2. तुम्हारी शीतल किरणें बिखेरती हूं ,
    व्यथित मन को शान्ति देती हूं सुन्दर अभिव्यक्ति ,

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  3. चाँद और चाँदनी ..बहुत खूबसूरत कविता ..

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  4. आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. बहुत खूबसूरत रचना जीजी ! पढ़ कर आनंद आ गया ! अति सुन्दर !

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  6. बहुत सुन्दर...


    गणेश चतुर्थी और ईद की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  8. वाह वाह ………………बेहद सुन्दर भाव पिरो दिये हैं………………गज़ब का लेखन्।

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