21 नवंबर, 2009

दूरियाँ


दूरियाँ बढ़ जाएँ यदि
मुश्किल पार जाना है
दूरियाँ घट जाने का
अंजाम अजाना है ।
जिसने समझा, सहा, देखा
पर पा न सका थाह दूरी की
पहेली थी जो दूरी की
रही फिर भी अधूरी ही ।
क्या है गणित दूरी का
ना समझो तो अच्छा है
निभ जाये जो जैसा है
वही रिश्ता ही सच्चा है ।

आशा

16 नवंबर, 2009

अवनि


हरा लिबास और सुंदर मुखड़ा
जैसे हो धरती का टुकड़ा
नीली नीली प्यारी आँखें
झील सी गहराई उनमें
मैं देखता ऐसा लगता
जैसे झील किसी से करती बातें
हँसी तेरी है झरने जैसी
चाल तेरी है नदिया जैसी
मंद हवा सा हिलता आँचल
अवनि सा दिल तुझे दे गया
मुझको अपने साथ ले गया !

आशा

15 नवंबर, 2009

दीपक


देश कहीं यदि घर बन जाये
और हमें मिले दीपक का जीवन
तब तम को हम दूर भगायें
दीपक से नश्वर हो जायें
पुनः देश को घर सा सजायें
दीवाली हर रोज मनायें ।

आशा